12 साल बाद होंगे 94 प्राथमिक कृषि साख सहकारी समितियों के चुनाव डेढ़ लाख से अधिक किसान चुनेंगे अपना नेता।
वर्ष 2013 में हुए थे चुनाव अब ग्रमीण नेता सजो रहे चुनाव की बाट पांच चरण में होंगे मतदान। मण्डी चुनाव की रहा देख रहे किसान।
आशीष यादव धार
धार जिले की 94 सहकारी समितियों में 12 साल बाद चुनाव होने का रास्ता साफ हो गया है। राज्य में कमलनाथ सरकार बनने के बाद सहकारी समिति में अध्यक्ष का मनोनयन हुआ था, लेकिन चुनाव 12 साल से नहीं हुए हैं। ऐसे में अब कोर्ट ने इस मामले में महत्वपूर्ण आदेश जारी
वही मध्यप्रदेश में प्राथमिक कृषि साख सहकारी समितियों (पैक्स) के चुनाव कार्यक्रम की घोषणा की गई है। मप्र राज्य सहकारी निर्वाचन प्राधिकारी ने ये चुनाव 1 मई से सितंबर तक कराने का निर्णय लिया है। इससे पहले यह चुनाव 2013 में हुए थे और तब से अब तक पैक्स के चुनाव नहीं हो पाए थे। इसके लिए मतदाता सूची तैयार करने का काम तेजी से शुरू हो गया है। 14 मई को सूची का अंतिम प्रकाशन होगा। मप्र राज्य सहकारी निर्वाचन प्राधिकारी ने चुनाव कार्यक्रम एक साल पहले जारी किया था, लेकिन लोकसभा चुनाव के चलते इसे टाल दिया गया था।
94 समितियों में मतदान:
जिले चुनाव हुए 12 वर्ष से ज्यादा समय हो चुका है। धार जिले में एक सहकारी बैंक है। जिले की समितियों के पदाधिकारी मिलकर जिला सहकारी बैंक के अध्यक्ष का चुनाव करते हैं। इन सभी समितियों के चुनाव पहले चरण में कराए जाने हैं या बाद में अभी यह तय नहीं हुआ है।
इसके लिए ऐसे किसान जो ड्यू और ओवरड्यू है उनकी जानकारी एकत्रित करना शुरू कर दिया है। इन चुनाव में वही किसान या फिर व्यक्ति भाग ले सकता है या मतदान कर सकता है जो बैंक से लोन ले चुका हो। बोर्ड के सदस्यों के अलावा दुग्ध समिति, मार्केटिंग समिति, खाद्य समिति, ईंट भट्टा समिति, लघु उद्योग और इफ्को जैसे सदस्य भी इस बोर्ड में शामिल होते हैं।
दो लाख किसान हैं सदस्य:
जिले में सहकारी समितियां और जिला सहकारी बैंक कितना महत्व रखता है यह इसी बात से समझा जा सकता है कि इन सहकारी समितियों में जिले के 2 लाख किसान सदस्य है। यही सदस्य मिलकर समितियों के पदाधिकारी चुनते हैं। ये समितियां बैंक के संचालन के साथ-साथ गांव-गांव में किसानों को उचित मूल्य पर खाद-बीज और कृषि उपकरण उपलब्ध कराती है। इससे किसानों को काफी फायदा होता है।
सरकार की मनसा नहीं चुनाव करवाने की:
कांग्रेस विधायक एवं अपेक्स बैंक के पूर्व अध्यक्ष भंवर सिंह शेखावत का कहना है सरकार की मंशा सहकारी और कृषि उपज मंडी के चुनाव कराने की नहीं है। बार-बार सहकारी चुनाव टालने पर ये मामला हाईकोर्ट पहुंचा था। जिसमें हाईकोर्ट ने चुनाव न कराने के रुख पर जुर्माना भी लगाया था। हाईकोर्ट की नाराजगी से बचने के लिए चुनाव शेड्यूल जारी किया गया है, लेकिन अभी भी चुनाव कराने पर सरकार की नीयत साफ नहीं है। पहले भी सरकार चुनाव कार्यक्रम जारी कर चुकी है। चुनावों से बचने के लिए हाल ही में बीजेपी सरकार ने को-ऑपरेटिव एक्ट में बदलाव कर दिया है। इस बदलाव के बाद अब समितियों में प्रशासक का कार्यकाल असीमित कर दिया गया है। जबकि पूर्व में सहकारी समितियों के भंग होने के बाद प्रशासक का कार्यकाल केवल छह माह ही हो सकता था।
पांच साल का कार्यकाल:
बोर्ड में शामिल अध्यक्ष सहित उपाध्यक्ष की तरह संस्थाओं में भी अध्यक्ष व उपाध्यक्ष चुने जाएंगे। जिनके लिए कृषक सदस्य मतदान करेंगे। निर्वाचित सदस्यों के साथ अध्यक्ष व उपाध्यक्ष का कार्यकाल पांच साल का होता है। पिछला कार्यकाल 2019 में खत्म हो गया था, लेकिन कोरोना की वजह से दो साल चुनाव नहीं हो सके। वहीं बोर्ड का कार्यकाल पूरा होने पर संस्थाओं में प्रशासक नियुक्त किए गए थे जो अभी तक कामकाज संभाल रहे रहे। हैं।
चुनाव न होने से यह दिक्कत:
चुनाव न होने के कारण समितियों और बैंकों में नीतिगत निर्णय नहीं लिए जा पा रहे हैं। किसानों से जुड़ी समस्याओं का समाधान भी प्रभावित हो रहा है। इसके अलावा, समितियों के विस्तार और कारोबार में भी निर्णय समय पर नहीं हो पा रहे हैं। प्रशासक केवल प्रशासनिक कामों पर ध्यान देते हैं, जिससे समितियों की प्रमुख गतिविधियों में देरी होती है।
इन समस्याओं का समाधान होगा
यह चुनाव पिछले कई वर्षों से लंबित हैं, लेकिन अब प्रदेश में चुनाव प्रक्रिया शुरू हो रही है। इसके तहत, हजार से अधिक कर्मचारियों की जरूरत होगी, जिन्हें जीएडी से आदेश जारी कर चुनाव कराने के लिए नियुक्त किया जाएगा। इसके अलावा, चुनाव को सुचारू रूप से संचालन के लिए पुलिस बल की भी आवश्यकता होगी। चुनाव न होने के कारण, प्रदेश की लगभग 4531 प्राथमिक कृषि साख सहकारी समितियों में फिलहाल प्रशासक कार्यरत हैं। इसी तरह प्रदेश के 38 जिला सहकारी बैंकों और अपेक्स बैंक में भी प्रशासक कार्य कर रहे हैं।
2013 में हुए थे चुनाव
वर्ष 2013 में चुनाव के बाद पांच वर्ष के लिए संचालक मंडल ने काम किया। इसके बाद वर्ष 2018 में चुनाव होना था, लेकिन विधानसभा चुनाव के चलते पैक्स चुनाव टल गया। वर्ष 2019 में लोकसभा चुनाव आ गया। इसके बाद कांग्रेस सरकार चुनाव की तैयारी करा रही थी, फिर सरकार गिर गई। वर्ष 2020 में कोरोना आ गया, इसके बाद निकाय चुनाव शुरू हो गए। वर्ष 2023 में चुनाव को लेकर हाईकोर्ट में याचिका दायर हुई। कोर्ट ने दिसम्बर 2023 में सरकार को चुनाव कराने के निर्देश दिए। इसके बाद फिर अलग-अलग कारणों से चुनाव टल गए।
इस साल मण्डी चुनाव हलचल:
मध्यप्रदेश में साल 2011-12 में कृषि उपज मंडी समितियों और 2013 में सहकारी समितियों के लिए चुनाव कराए गए थे। मंडी समितियों का कार्यकाल 2017 में पूरा होने के बाद सरकार ने पहले विधानसभा और फिर लोकसभा चुनाव को देखते हुए दो बार छह-छह महीने का कार्यकाल बढ़ा दिया था। इस वजह से साल 2018 में मंडियों में चुनाव नहीं हुए। वहीं सहकारी समितियां 2018 में कार्यकाल पूरा होने के बाद से ही भंग हैं। तभी से मंडी और सहकारी समितियों की कमान प्रशासक के रूप में अधिकारियों के हाथ में है। लंबे समय तक इन संस्थाओं से बाहर रहने से जनप्रतिनिधियों का दखल लगभग खत्म हो गया है। केवल विपक्षी कांग्रेस ही नहीं सहकारिता क्षेत्र में सक्रिय भाजपा नेता भी सालों से चुनाव की मांग करते आ रहे हैं
पांच चरण में होंगे चुनाव:
निर्वाचन कार्यक्रम के तहत जिले में 94 सहकारी समितियों है जिनके 2 लाख सदस्य है जिसके हजारो सदस्यों ब्याज माफी के दौरान अवरड्यू हो गए हैं। वही इस बार चुनाव पांच चरणों में होगा। प्रक्रिया मई से सितम्बर के बीच पूरी हो जाएगी। पहला चरण 1 मई से 23 जून, दूसरा चरण 13 मई से 4 जुलाई, तीसरा चरण 23 जून से 22 अगस्त, चौथा चरण 5 जुलाई से 31 अगस्त और अंतिम व पांचवां चरण 14 से जुलाई 7 सितंबर के बीच संपन्न होगा। वहीं अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और प्रतिनिधियों का चयन विशेष साधारण सम्मेलन में होगा। यानी एक बार फिर न केवल सहकारी समितियां बल्कि जिला सहकारी बैंक, राज्य सहकारी बैंकों में भी जनप्रतिनिधियों का दखल होगा।
नई समितियां बनाने का लक्ष्य:
भारत सरकार ने सहकारिता मंत्रालय गठित कर यह स्पष्ट कर दिया है कि इस क्षेत्र का विस्तार किया जाना है। इसके लिए प्रक्रिया भी प्रारंभ हो गई है। प्रदेश में लगभग पांच सौ नई समितियां गठित करने का लक्ष्य रखा गया है ताकि किसानों को सभी सुविधाएं पास में ही मिल जाएं। एक समिति का दायरा तीन पंचायत क्षेत्र से अधिक न हो। विभागीय अधिकारियों का कहना है कि समितियों के गठन में व्यावहारिक दृष्टिकोण रखा जा रहा है। समितियां स्वयं का कारोबार करके अपने पैरों पर खड़ी हो, इसके लिए उन्हें अलग-अलग गतिविधियों से जोड़ा जाना भी प्रस्तावित है।