विविध

तुलसीदास ने हिन्दू समाज को जागृत और चैतन्यतो बनाया ही, आस्था-श्रद्धा की प्राण प्रतिष्ठा भी की

छत्रीबाग रामद्वारा पर रामचरित मानस के प्रणेता गोस्वामी तुलसीदास की 528वीं जयंती पर सत्संग

तुलसीदास ने हिन्दू समाज को जागृत और चैतन्यतो बनाया ही, आस्था-श्रद्धा की प्राण प्रतिष्ठा भी की

छत्रीबाग रामद्वारा पर रामचरित मानस के प्रणेता गोस्वामी तुलसीदास की 528वीं जयंती पर सत्संग एवं सामूहिक आरती

इंदौर। भारत के सनातन धर्म के संक्रमणकाल और तत्कालीन मुगल शासकों के राज में हमारे सदग्रंथों को जलाने जैसी घटनाओं के बीच गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरित मानस के माध्यम से हिन्दू समाज को न केवल जागृत और चैतन्य बनाया, बल्कि धर्म एवं संस्कृति के प्रति अटूट और अखंड आस्था-श्रद्धा की भी प्राण प्रतिष्ठा की। आज एक बार फिर देश को सनातन धर्म की ध्वजा को और अधिक ऊंचाई देने तथा राम नाम की अमूल्य धरोहर को जन-जन तक पहुंचाने की जरूरत है।

ये दिव्य विचार हैं रामस्नेही संप्रदाय के संत सुखराम महाराज रामस्नेही बाडमेर वालों के, जो उन्होंने छत्रीबाग रामद्वारा पर गोस्वामी तुलसीदास की 528वीं जयंती पर आयोजित सत्संग, माल्यार्पण एवं सामूहिक आरती के कार्यक्रम में व्यक्त किए। प्रारंभ में छत्रीबाग रामद्वारा परिवार की ओर से गिरधर नीमा, राम निवास मोड़, रामसहाय विजयवर्गीय, हेमंत काकानी, वासुदेव सोलंकी आदि ने संतश्री का स्वागत किया और उनके सानिध्य में गोस्वामी तुलसीदास के चित्र एवं रामचरित मानस का पूजन कर सामूहिक आरती संपन्न की।

संतश्री सुखराम महाराज ने कहा कि गोस्वामी तुलसीदास ने बाल्यकाल से ही रामबोला के रूप में अपने जीवन की शुरुआत कर कालांतर में भारतीय समाज को राम चरित मानस के रूप में एक ऐसी धरोहर प्रदान की है, जो आज भी भारतीय समाज के घर-घर और जन-जन तक रची-बसी हुई है। विनय पत्रिका, गीतावली एवं कवितावली जैसी रचनाएं भी तुलसी की रचनाधर्मिता का प्रमाण है। प्रयागराज, अयोध्या, चित्रकूट और देश के सभी प्रमुख तीर्थों के दर्शन करने के बाद गोस्वामी तुलसीदास ने भारतीय अध्यात्म और संस्कृति को ऐसा विलक्षण ग्रंथ और साहित्य प्रदान किया, जो अनपढ़ और निरक्षर लोगों के लिए भी कंठस्थ बन गया है।

उन्होंने गोस्वामी तुलसीदास के बाल्यकाल से लेकर अंतिम समय तक के प्रेरक प्रसंगों का उल्लेख करते हुए कहा कि आज भी गांव-गांव में रामायण की चौपाइयां और दोहों के साथ लोगों की भौर शुरू होती है और सांझ भी रामचरित मानस के साथ संपन्न होती है। हनुमानजी की कृपा और आज्ञा प्राप्त करने के बाद तुलसीदास ने प्रभु श्रीराम के चरित्र को अपनी लेखनी से इतना विस्तारित और जीवंत बना दिया कि सनातन धर्म की ध्वजा हमेशा फहराती रहेगी। देश को राम नाम और राम भक्ति से जोड़ने का सबसे बड़ा श्रेय गोस्वामी तुलसीदास को ही है, जिनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए किए गए सभी प्रयास बहुत बौने लगते हैं। देश को आज एक बार फिर तुलसीदास जैसे मानस रचयिता और रामचरित मानस जैसे समाज को चैतन्य एवं जागृत बनाने वाले ग्रंथों की सख्त जरूरत है।

 

Show More

Related Articles

Back to top button