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समाज में अहिंसा, सत्य, बम्हचर्य और संयम की शिक्षा दी -महासतीजी

चमत्कारिक संत श्री चौथमलजी महाराज का जीवन संयम, साधना और चमत्कारों का संगम था : श्री धैर्यप्रभाजी महाराज

चमत्कारिक संत श्री चौथमलजी महाराज का जीवन संयम, साधना और चमत्कारों का संगम था : श्री धैर्यप्रभाजी महाराज*

पोरवाल भवन में जैन दिवाकर की 148 वीं जन्म जयंती पर हुआ आठ दिवसीय आयोजन

इंदौर। श्री श्वेतांबर जैन  पदमावती पोरवाल संघ जंगमपुरा के तत्वावधान में चमत्कारिक संत जैन दिवाकर श्री चौथमलजी महराज की 148 वीं जन्म जयंती गुरु दिवाकर धर्म शेरनी महासती श्री धैर्यप्रभाजी महाराज आदि ठाणा के सानिध्य में श्रध्दापूर्वक मनाई गई। आठ दिवसीय आयोजन में जैन दिवाकर से जुड़ी विभिन्न नाटिकाओं का मंचन, दिवाकर जन्मोत्सव एवं युवा सम्मेलन, तप महोत्सव और उनकी गौरवगाथा के कार्यक्रम भी आयोजित हुए।

महासतीजी ने कहा कि गुरुदेव का जन्म विक्रम संवत 1934, कार्तिक शुक्ल तेरस ईस्वी सन् 17 नवंबर 1877 रविवार को नीमच (म.प्र.) में हुआ था।  बाल्यावस्था से ही उनका झुकाव धर्म, साधना और संयम की ओर रहा। उन्होंने समाज में अहिंसा, सत्य, बम्हचर्य और संयम की शिक्षा दी। समाज में अनेक संघों, जिनालयों व पाठशालाओं की स्थापना के लिए प्रेरणा दी। उन्होंने भील, खटीक व अन्य निम्न समाजों को मांस मदिरा और व्यसन छोड़ने के लिए प्रेरित किया। उनका जीवन संयम, साधना और चमत्कारों का संगम था।

आपने कहा कि उनके प्रत्येक चमत्कार किसी आलौकिक शक्ति से नहीं बल्कि आत्मबल, ध्यान और करुणा से उत्पन्न होते थे। वे श्रमण संघ के ज्योतिपुंज थे। उन्होंने अपने जीवन में अनेक चमत्कार किए, जिनमें प्रमुख रूप से वर्षायोग में वर्षा का चमत्कार, तप के प्रभाव से मृत बालक पर सफेद चादर लपेट कर जीवित करना, संथारा के समय दिव्य प्रकाश, धर्मसभा की भीड़ में हिंसक पशु को शांत करना, अपनी दिव्य साधना से हाथ दिखाकर रेल रोकना आदि शामिल थे।

आपने कहा कि गुरुदेव की धर्मसभा में अनेक राजा महाराणा व सेठ लोग भी आते थे और नतमस्तक होकर शीश झुकाते थे। जैन दिवाकर ऐसे एकमात्र संत थे, जिन्होंने 180 राजाओं को जैन बनाया था। उनकी वाणी की गूँज आज भी पूरे मेवाड़, मालवा, राजस्थान और मध्यप्रदेश में गूंजती है। ऐसा प्रभाव था जैन दिवाकर श्री चौथमलजी महाराज का। उनकी वाणी में जबर्दस्त जादू था।

पोरवाल संघ के अध्यक्ष  विनोद जैन, मंत्री कमल जैन एवं चातुर्मास प्रमुख  मोहन जैन ने बताया कि जैन दिवाकर  चौथमलजी महाराज की पोरवाल समाज पर विशेष कृपा थी। उन्होंने समाज को धर्म से जोड़ने की प्रबल प्रेरणा दी और कई उपकार किए। उन्होंने कोटा, सवाईमाधोपुर, नीमच, मंदसौर सहित दूरस्थ क्षेत्रों में विचरण कर जैन  समाज को धर्म के लिए प्रेरित किया।

प्रचार प्रमुख  मुकेश जैन ने बताया कि धर्म सभा में बड़ी संख्या में मध्यप्रदेश, राजस्थान और महाराष्ट्र के कई शहरों से भी गुरु भक्त उपस्थित थे।

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