
इंदौर, । भागवत मनुष्य को सत्संग की ओर आगे बढ़ाकर मोक्ष की मंजिल तक पहुंचाती है। मोह का क्षय होना ही मोक्ष है। भक्ति में श्रद्धा और विश्वास अनिवार्य तत्व है। भक्ति निष्काम होना चाहिए। याद रखें कि भक्ति बाजार में नहीं मिलेगी। भक्ति अंतःकरण के साथ भगवान से प्रेम का रिश्ता जोड़ने पर ही मिल सकती है। सुख-दुख जीवन के क्रम है। भगवान और मृत्यु, दोनों को कभी नही भूलना चाहिए।
ये दिव्य विचार हैं भागवताचार्य योगेश्वरदास महाराज के, जो उन्होंने लोहारपट्टी स्थित श्रीजी कल्याण धाम, खाड़ी के मंदिर पर मंगलवार को राधा रानी महिला मंडल के सहयोग से हंस पीठाधीश्वर महामंडलेश्वर स्वामी रामचरणदास महाराज के सानिध्य में भागवत ज्ञान यज्ञ के तृतीय दिवस के प्रसंगों की कथा के दौरान व्यक्त किए । कथा में शिव-पार्वती विवाह का उत्सव धूमधाम से मनाया गया। कथा शुभारंभ के पूर्व राधारानी महिला मंडल की ओर से श्रीमती वर्षा शर्मा, प्रफुल्ला शर्मा, हंसा पंचोली, उर्मिला प्रपन्न, मंजू शर्मा, ज्योति शर्मा कामाख्या, हेमलता वैष्णव, मधु गुप्ता आदि ने किया। अतिथियों का स्वागत पं. पवन शर्मा, पं. राजेश शर्मा, अशोक चतुर्वेदी, महंत यजत्रदास आदि ने किया।
भागवताचार्य योगेश्वरदास ने कहा कि भगवान को धन बल, बाहु बल या अपने ऐश्वर्य के बूते पर नहीं रिझाया जा सकता। उनकी कृपा दृष्टि हमारा धन, वैभव या शक्ल-सूरत देखकर नहीं, बल्कि हमारी भक्ति देखकर मिलेगी। मृत्यु के बाद हमारा जो कुछ है वह सब यहीं धरा रह जाएगा। जिस तरह हम एक छोटे से कम्प्यूटर में बहुत सी जानकारी जमा कर सकते हैं, उसी तरह हमारे कर्मों का ब्यौरा भी परमात्मा के पास दर्ज हो जाता है। विडंबना यह है कि संसार में हम सबको मोह ने घेर रखा है। दुनिया के सारे विवाद मोह की प्रवृत्ति के कारण ही पनपते हैं। मोह का क्षय होना ही मोक्ष की प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त करता है। मोक्ष ही हम सबके जीवन का परम लक्ष्य है।