मालवा उत्सव के अंतिम दिन रही चहल-पहल सजन मोरे घर आयो ठुमरी की रही प्रस्तुति खास
काठी, ढाल तलवार, सिद्धि धमाल ,शिव लीला,गुदुम बाजा, काठी, पंथी नृत्य हुए
इंदौर । मालवा उत्सव का आगाज जिस भव्यता के साथ हुआ था आज अंतिम दिवस भी वही भव्यता निरंतरता और उत्साह लोगों में दिखाई दे रहा था। जब भव्य मंच से उदघोषिका ने घोषणा की कि आज मालवा उत्सव का समापन दिवस है तो उपस्थित दर्शको की भावना थी कि यह उत्सव बहुत जल्दी समाप्त हो गया है। लोक संस्कृति मंच के संयोजक शंकर लालवानी ने इंदौर की जनता को मालवा उत्सव को सफल बनाने के लिए धन्यवाद दिया और बधाई दी।
लोक संस्कृति मंच के संयोजक एवं सांसद शंकर लालवानी ने बताया कि लालबाग परिसर में हर तरफ जल्दबाजी नजर आ रही थी कोई जल्दी से झूला झूल कर घर जाना चाहता था तो कोई शिल्प बाजार से अपने पसंद की वस्तु जल्द से जल्द घर ले जाना चाहता था ।एक तरफ सांस्कृतिक कार्यक्रमों की रंगारंग चकाचौंध मची थी तो दूसरी तरफ फूड स्टाल पर इंदौरी रंग चढ़ा था मालवी जायके के साथ संपूर्ण भारतवर्ष के जायके का स्वाद लेकर लोग चटकारे ले रहे थे।
लोक संस्कृति मंच के सचिव दीपक लंवगड़े एवं सतीश शर्मा ने बताया कि आज सांस्कृतिक कार्यक्रम में गुजरात जूनागढ़ से आई टीम ने शौर्य पर आधारित ढाल तलवार नृत्य प्रस्तुत किया जिसमें एक हाथ में ढाल और एक हाथ में तलवार लेकर वीरता की नई परिभाषा गड़ी ।यह नृत्य युद्ध में विजय प्राप्त करने के पश्चात किया जाता है। गुजरात से ही आइ टीम द्वारा प्राचीन गरबा प्रस्तुत किया गया जो महिलाओं एवं पुरुषों द्वारा किया गया। वही गुजरात के भरूच जिले से पधारे सिद्धि धमाल समूह ने अफ्रीकन जनजाति का लोक नृत्य जो कि उनका पारंपरिक नृत्य है प्रस्तुत किया जो दर्शकों के लिए एक अद्भुत अनुभव दे गया ।इसमें कमर पर विशेष प्रकार की परिधान पहनी गई थी।
सजन मोरे घर आयो
लोक संस्कृति मंच के नितिन तापड़िया, रितेश पिपलिया एवं संकल्प वर्मा ने बताया कि द्रुपद अकादमी के कलाकार डॉ आशीष पिल्लई के नेतृत्व में कथक नृत्य की प्रस्तुति तीन भागों में प्रस्तुत की गई प्रथम भाग में तीन ताल में तराना प्रस्तुत किया गया द्वितीय भाग में गौतम काले जी द्वारा गाए गए गीत पर प्रस्तुति हुई इसमें आसमान में छाए हुए काले बादल को देखकर नायिका श्री कृष्ण के आने का इंतजार करती दिखाई दे रही थी तीसरे भाग में ठुमरी “सजन मोरे घर आयो” की प्रस्तुति हुई जिसमें गोपियों द्वारा कृष्ण के आने की खुशी को भावों के माध्यम से दिखाया गया ।
वरदा कला संस्थान द्वारा शिव लीला का मंचन भरतनाट्यम नृत्य नाटिका के द्वारा किया गया जिसमें द्वादश ज्योतिर्लिंग का रहस्य शिव तांडव आदि विषय को दिखाया गया एवं शिव की विभिन्न लीलाओं को एवं भाव को रावण द्वारा रचित शिव तांडव स्त्रोत के माध्यम से प्रस्तुत किया गया । लाल कलर के कपड़े पहनकर कोडियो से सजी ड्रेस में और छोटे-छोटे ढोलक और टीमकी बजाकर उछल उछल कर गोंड जनजाति के कलाकारों द्वारा गुदुम बाजा नृत्य प्रस्तुत किया गया। अरवाचीन गरबा जिसमें गोल घेरा बनाकर गरबा खेला गया। सिर पर पगड़ी एवं चेहरे पर कपड़ा बांधकर छत्तीसगढ़ से आए कलाकारों द्वारा प्रस्तुत किया गया। “सतनाम सतनाम दिया जलाए तेरे नाम” की धुन पर पंथी नृत्य प्रस्तुत हुआ जो लय ताल का एक सुंदर कांबिनेशन था इसमें पिरामिड भी बनाए गए बेतूल से आए लॉक कलाकारों द्वारा गोंड जनजाति का थाट्या नृत्य भी मंच पर दर्शकों को लुभा गया ।