विविध

देश-दुनिया ने देखा ” सनातन” का ” संस्कारित” उत्सव

साबित हुआ, अटक से कटक और कश्मीर से कन्याकुमारी तक भारत एक "हिन्दू राष्ट्र"

रामोत्सव ” बना ” राष्ट्रोत्स्व “

सदियों की प्रतीक्षा, बरसों बरस के संघर्ष के बाद मिली विजय के जश्न में दिखी ” हिंदुत्व” की स्पष्ट झलक

साबित हुआ, अटक से कटक और कश्मीर से कन्याकुमारी तक भारत एक “हिन्दू राष्ट्र”

जाति-पंथ, वर्ग भेद का दूर दूर तक अता-पता नही, रामनाम पर पूरा देश एक परिवार

बहुसंख्यक समाज ने इतनी बड़ी विजय को भी शालीनता से पचा लिया, कोई कर सकता है ऐसा?

देश ने भी देखा और दुनिया ने भी कि कैसे रामोत्सव देखते ही देखते राष्ट्रोत्स्व मे परिवर्तित हुआ। दुनियां ने ये भी देखा कि 130 करोड़ की आबादी कितनी आसानी से इस महाविजय को जज़्ब कर गई। जाति पंथ, वर्ग भेद का भेद करने वाली आंखों ने भी एकजुट “राम की संतानें” देखी। कही कोई ऊंच नीच नही। न अगड़ा, न पिछड़ा देखा। भाषा, प्रान्त की सरहदें आपस मे कीर्तन कर रही थी। सबकी जुबां पर बस राम नाम और ह्रदय में राम भक्ति। रामभरोसे है ये देश। एक बार फिर ये साबित हो गया। ये भी सुनिश्चित हो गया कि भगवान राम इस देश के राष्ट्र देवता भी हैं। ये रामोत्सव के राष्ट्रोत्स्व में हुए बदलाव से सत्य साबित भी हो गया।

नितिनमोहन शर्मा

कितनी बड़ी विजय? कल्पना से परे। सदियों की प्रतीक्षा का अंत कराने वाली विजय। सालो साल के संघर्ष की जीत। बरसो बरस के अपमान पर सम्मान की विजयश्री। अपने आराध्य की पीड़ा-प्रताड़ना से मुक्ति का दिन। शुद्ध धर्म-आस्था से जुड़ा सम्पूर्ण प्रसंग। फिर भी कितनी शालीनतापूर्वक देश के बहुसंख्यक समाज ने ये उत्सव मनाया। किसी अन्य धर्म-पन्थ में ये संभव हैं?

इतनी बड़ी विजय को कितनी शालीनता से पचा गया बहुसंख्यक समाज। जबकि पूरा राम जन्मभूमि अभियान अपमान से उपजे आक्रोश, आक्रमकता और पुरुषार्थ से जुड़ा था। हजारों हज़ार के बलिदान से जुड़ा था। निर्दोष कारसेवकों पर बरसी गोलियों, लाठियो से जुड़ा था। बावजूद इसके इस जीत पर, इस विजयश्री पर कही कोई आक्रमकता, आक्रोश नजर आई?

नजर आया शुद्ध उत्सव, नजर आई शुद्ध राम भक्ति। अपने आराध्य के प्रति समर्पण भाव। अपने देश के प्रति कृतज्ञता का भाव। परस्पर मैत्री और बन्धुत्व भाव के संग देश ने उत्सव मनाया। आक्रोश की अभिव्यक्ति को देश के बहुसंख्यक समाज ने उत्सव में बदल दिया। हजारो लाखो की भीड़ ने राम मंदिर का जश्न मनाया। हर गली, गांव। हर नगर, कस्बे में उत्सव मना। हर मोहल्ले जश्न मना। लेकिन कही किसी अन्य पन्थ धर्म को रत्तीभर इस उत्सव में नीचा दिखाने के प्रयास नही हुए? कही नजर आया ऐसा कोई प्रसंग? इसी का नाम तो भारत हैं। ये ही भारतीय संस्कार हैं। ये ही तो हिंदुत्व हैं। इसी का नाम सनातन हैं।

देश और दुनिया ने सनातन के इसी संस्कारित उत्सव का नज़ारा देखा। ये भी देखा कि अटक से कटक और कश्मीर से कन्याकुमारी तक भारत एक देश के रूप में ” सनातन राष्ट्र” है। भगवान राम इस देश के ” राष्ट्र देवता ” हैं। ये हिन्दू राष्ट्र है, जहां इतनी बड़ी विजय के बाद भी किसी अन्य धर्म के मतावलंबियों को कही कोई दिक्कत नही आई। उलटे देश के अल्पसंख्यक समुदाय ने भी 22 तारीख आते आते इस उत्सव में स्वयम का जुड़ाव महसूस किया। वो अलग थलग नही रहा। अपनी मोन स्वीकृति के साथ वो भी इस उत्सव का हिस्सा बना और रामलला का ये पर्व ” रामोत्सव” के साथ ” राष्ट्रोत्स्व” बन गया।

प्रभु श्रीराम के रूप में ये भारत के प्राण की एक तरह से प्राणप्रतिष्ठा का पर्व था। इस पर्व के जरिये समूची दुनिया ने देखा कि भारत एक देश के रूप में ” राममय” हैं। जाति, पंथ, वर्ग भेद सब श्रीराम के चरणों मे आकर विलीन थे। हर जाति, समुदाय रामभक्ति में तल्लीन थे। न कोई अगड़ा था, न पिछड़ा। न कोई स्वर्ण, न दलित। न उत्तर का, न दक्षिण का। न पूरब-पश्चिम का। सबके सब राम के। उस राम के जिसके लिए सब एक समान थे। लिहाज़ा समाज भी एकजुट था।

देश के बहुसंख्यक समाज ने इतनी बड़ी विजय को सिर्फ और सिर्फ उत्सव पर केंद्रित कर दिया। और उत्सव भी क्या अनुपम और अलौकिक मनाया कि सारे वर्षभर के त्यौहार उसके सामने फ़ीके रह गए। करना क्या है? कुछ पता नही? कैसे खुशिया मनाना है, ये भी नही पता। लेकिन ये देश स्वस्फूर्त ही त्यौहार की तैयारियों में जुट गया। दूषित राजनीति यहाँ भी बाज नही आई। “मुंह की खाने” के बाद भी उसने जी-भरकर “मुँहजोरी” की लेकिन इस देश ने बता दिया कि क्यो भारत और भारतवंशियो पर पूरी दुनिया गर्व करती हैं।

जी हाँ, देश के हिन्दू ऐसे ही हैं। सब भारतीय बिल्कुल ऐसे ही हैं। समस्त सनातनी एक से ही हैं। हम जीत में भी सहज रहतें हैं। जोश में भी होश में रहते हैं। हमने जीतकर भी कभी पराजित का मान मर्दन नही किया। न इतराये। न उग्रता दिखाई। बहुसंख्यक होते हुए भी शालीनता से जश्न मनाते है। अपने ही देश मे, विधर्मियों द्वारा धूलधूसरित किये गए अपने ही आराध्यों की पुनः प्राण प्रतिष्ठा के लिए सदियों इंतजार करते हैं। सब कुछ भगवान भरोसे रहता है। इसलिए ईश्वर भी साथ देता हैं। देर से ही सही, पर वो न्याय करता हैं।

ये देश ” राम भरोसे ” हैं और जनजन के राम अपने भक्तों का भरोसा कभी नही तोड़ते। भरोसा था रामलला आएंगे। आये, वो भी गाजे बाजे के संग। देर लगी, पर अंधेर नही हुई। सब तरफ रामोत्सव का, राष्ट्रोत्स्व का उजियारा फ़ेल गया।पूरी दुनिया की आंखे चुंधिया गई। राम भरोसे जो बैठे थे।

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