जीवन में विचारों की ऊंचाई हिमालय से ऊँची होनी चाहिए- ऋतुंभरा देवी
श्रीराम कथा में भक्ति भाव से मनाया शिव विवाह, हजारों भक्तों ने किया कथा का रसपान

इंदौर से विनोद गोयल की रिपोर्ट: —-
इंदौर । प्रत्येक मानव में ऊर्जा का असीम भंडार होता है लेकिन वह उसका सही इस्तेमाल नहीं करता है। अपनी लाइन बड़ी करने के लिए वह दूसरों की लाइन छोटी करने का प्रयत्न करता है। होना तो यह चाहिए की हमेशा अपनी लाइन बड़ी करने की दिशा में प्रयास होना चाहिए। हिमालय की ऊंचाई हिमालय की होती है लेकिन व्यक्ति के जीवन में अपने विचारों की ऊंचाई हिमालय से भी ऊँची होनी चाहिए। संसार में प्रशंसा ही एक मात्र ऐसा शस्त्र है जिसके कारण हर काम संभव हो जाते हैं। यह बात देपालपुर में चौबीस अवतार मंदिर प्रांगण में जारी श्रीराम कथा के तृतीय दिवस मानस मर्मज्ञ साध्वी ऋतुभरा देवी ने कही। श्री पुंजराज पेटल सामाजिक सेवा समिति एवं श्रीराम कथा आयोजक रामेश्वर गुड्डा पटेल ने बताया कि आज कथा के दौरान शिव पार्वती विवाह व राम जन्म प्रसंग का वर्णन के साथ जीवंत उत्सव भी मनाया। शिव-पार्वती विवाह की घोषणा होते ही मंदिर परिसर में उपस्थित श्रद्धालुओं ने जयकारों की ध्वनि के साथ आनंद के साथ शिव-पार्वती का विवाहोत्सव मनाया। व्यासपीठ का पूजन शुक्रवार को रामेश्वर गुड्डा पटेल एवं परिवार द्वारा किया गया एवं आरती में चिंटू वर्मा, रामस्वरूप गेहलोत, चन्दरसिंह पटेल, संतोष पटेल, गोपाल जाट, केपीसिंह दरबार, गोपाल चौधरी, अंतरसिंह राठौड़, संतोष ठाकुर, निरंजन ठाकुर, भुवानसिंह चौहान, अंतरसिंह मौर्य, जितेंद्र गेहलोत, हरिराम सोलंकी, श्रवण चावड़ा, कैलाश चौहान सहित हजारों की संख्या में भक्त उपस्थित थे।
सात दिवसीय श्रीराम कथा के तृतीय दिन साध्वी दीदी मां ऋतुंभरा साध्वी ने कहा कि शंकर से ही प्रेम है और प्रेम में ही भगवान शंकर निवास करते है। भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह साफरण नहीं बल्कि दिव्य शक्तियों के मिलन का प्रतीक है। संसारिक जगत में विवाह यानी चित्त में संसार के सुख कि अभिलाषा होती है। आपने कहा कि हिमालय व कैलाश कि उनकी अपनी ऊंचाई होती है लेकिन मनुष्य को अपने विचारों की ऊंचाई हिमालय और कैलास से भी ऊँची रखना चाहिए। कथा प्रसंग अनुसार नारद प्रसंग पर आपने कहा कि संसार में ज़ब आपका कोई काम णा बन पा रहा हो तो प्रशंसा रूपी तीर का इस्तेमाल करना चाहिए। व्यक्ति अपनी प्रशंसा सुनने का आदी है। प्रशंसा ऐसा अस्त्र है जिससे पाषाण सी प्रतिमा भी बोलने को मजबूर हो जाती है। आपने राजा दशरथ प्रसंग का वर्णन करते कहा की संसार एक गुरु के अलावा किसी को भी अपने मन का दुख नहीं कहना चाहिए। राम जन्म कथा में देवी अरूंधती व रकैकई, सुमित्रा व कोशल्या संवाद का वर्णन करते कहा की गर्भ में पल रहे जीवन पर माता के मन में अस्ये विचारों का बहुत गशहरा प्रभाव होता है। इसलिए गर्भवती माताओं को भगवान की भक्ति में ध्यान लगाना चाहिए तथा मन में अच्छे विचारों को लाना चाहिए।