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गंगा स्नान से पाप मुक्ति का मतलब यह तो नहींकि हम रोज पाप करें और नहाकर मुक्त हो जाएं

लोहारपट्टी में भक्तों ने प्रतिदिन कम से कम एक श्लोक का पाठ करने की शपथ ली-

इंदौर, । यदि गंगा में स्नान करने से हमारे पापों का नाश होता है तो इसका मतलब यह नहीं कि हम हर दिन पाप करें और गंगा में नहाकर उनसे मुक्ति पा लें। गंगा या अपने अंचल की नदियों को प्रदूषित करना भी पाप कर्म है। प्रकृति भी परमात्मा का ही अंश है। हमारे मन में काम, क्रोध, लोभ, मोह जैसे विकार भरे पड़े हैं। जब तक ये खाली नहीं होंगे, तब तक भागवत के संदेश अंदर नहीं उतरेंगे।
लोहारपट्टी स्थित श्रीजी कल्याण धाम, खाड़ी के मंदिर पर उक्त दिव्य विचार भागवताचार्य पं. योगेश्वरदास ने राधा रानी महिला मंडल की मेजबानी में चल रहे भागवत ज्ञान यज्ञ में श्रीकृष्ण सुदामा मिलन प्रसंग के दौरान व्यक्त किए। कृष्ण सुदामा की मित्रता का भावपूर्ण प्रसंग सुनकर भक्तों की आखें छलछला उठी। महामंडलेश्वर स्वामी रामचरणदास महाराज के सानिध्य में विधायक गोलू शुक्ला एवं अन्य अतिथियों ने यजमान समूह की ओर से श्रीमती वर्षा शर्मा, उर्मिला प्रपन्न, मंजू शर्मा, ज्योति शर्मा प्रफुल्ला शर्मा, हंसा पंचोली, कामाख्या, हेमलता वैष्णव, मधु गुप्ता आदि के साथ व्यासपीठ का पूजन किया। कथा समापन अवसर पर स्वामी रामचरणदास महाराज ने सभी भक्तों को अपने-अपने घरों में गीता, रामायण एवं भागवत में से कोई एक धर्मग्रंथ रथने और प्रतिदिन कम से कम एक श्लोक का पाठ करने की शपथ दिलाई।
भागवताचार्य योगेश्वरदास ने कहा कि भागवत का मनन और मंथन मानव को महामानव की दिशा में आगे बढ़ाने वाला होता है। कलयुग में धर्म के नाम पर पाखंड और प्रदर्शन का बोलबाला ज्यादा है। भारतीय संस्कृति परंपराओं और मर्यादाओं से जुड़ी हुई है। धर्म प्रदर्शन के लिए नहीं, सेवा और परमार्थ की बुनियाद पर टिका होना चाहिए। परमात्मा के साथ प्रकृति भी वंदनीय है। भागवत हमारे अंदर तभी पहुंचेगी, जब हृदय में भरा हुआ अज्ञान और छल-कपट का कचरा बाहर निकलेगा। भागवत का श्रवण और मंथन पाप से मुक्ति का ही मार्ग है। कृष्ण – सुदामा की मित्रता इस बात का संदेश देती है कि राजमहल और झोपड़ों का भ

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